विश्व मधुमक्खी दिवस पर विशेष ◆●◆ स्वास्थ्य, पोषण और समृद्धता का अप्रतिम स्रोत है मधुमक्खी


      मानव जाति की अतिश्रेष्ठ मित्र होने के साथ छोटी सी मधुमक्खी से प्रकृति के विकास में बड़ा योगदान दिया है। मधुमक्खी मधुर एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ अर्थात शहद का उत्पादन करती है। लीची, नीबू प्रजातीय फलों, अमरूद, बेर, आड़ू, सेब आदि एवं दलहनी व तिलहनी फसलों में मधुमक्खियों द्वारा परागण कई दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परीक्षणों से यह भी जानकारी मिली है कि पर-परागण के बाद जो फसल पैदा होती है, उन दानों का वजन एवं पौष्टिकता अच्छी होती है। इससे स्पष्ट होता है कि मधुमक्खियाँ केवल शहद ही पैदा नहीं करती वरन फसलों की पैदावार बढ़ाकर खुशहाल बनाकर प्रदेश एवं देश को आर्थिक पौष्टिक खाद्यान्न उपलब्ध कराने में मदद करती हैं। प्रत्येक मधुमक्खी परिवार में तीन प्रकार की मक्खी पायी जाती हैं, जिनमें रानी, नर मक्खियाँ एवं कमेरी मक्खियाँ होती हैं।


धु की उपयोगिता:


       मधु अर्थात शहद अतिपौष्टिक, खाद्य पदार्थ तो है ही, साथ ही दवा भी है। मधु में निम्नलिखित तत्व पाये जाते हैं-
जल 17 से 18 प्रतिशत, फलों की चीनी (फ्रक्टोज) 42.2 प्रतिशत, अंगूरी चीनी (ग्लूकोज) 34.71 प्रतिशत, एल्यूमिनाइड 1.18 प्रतिशत और खनिज पदार्थ (मिनरल्स) 1.06 प्रतिशत। इसके अतिरिक्त मधु में विटामिन सी, विटामिन बी, सी, फॉलिक एसिड, साइट्रिक एसिड इत्यादि महत्वपूर्ण पदार्थ भी पाये जाते हैं। मधु भोजन के रूप में, मधु दवा के रूप में, एवं सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
मौन गृह की स्थापना:
       मैदानी भाग में इस कार्य को शुरू करने का उपयुक्त समय अक्टूबर और फरवरी में होता है। इस समय एक स्थापित मौन वंशों से प्रथम वर्ष में 20 से 25 किलोग्राम दूसरे वर्ष से 35-40 किलोग्राम मधु का उत्पादन हो जाता है। स्थापना का प्रथम वर्ष ही कुछ महंगा पड़ता है। इसके बाद केवल प्रतिवर्ष 8 या 10 किलोग्राम चीनी एवं 0.500 किलोग्राम मोमी छत्ताधर का रिकरिंग खर्च रहता है। उद्यान विभाग द्वारा तकनीकी सलाह मुफ्त दी जाती है। मधुमक्खी पालकों की मधुमक्खियों का प्रत्येक 10वें दिन निरीक्षण जो अत्यन्त आवश्यक है, विभाग में उपलब्ध मौन पालन में तकनीकी कर्मचारी से कराया जाता है।
मधु निष्कासन:
      आधुनिकतम ढंग से मधु निष्कासन कार्य किया जाता है, जिसमें अण्डे-बच्चे का चैम्बर अलग होता है। शहद चैम्बर में मधु भर जाता है। मधु भर जाने पर मधु फ्रेम सील कर दिया जाता है। शील्ड भाग को चाकू से परत उतारकर मधु फ्रेम से निष्कासक यंत्र में रखने से तथा उसे चलाने से सेन्ट्रीफ्यूगल बल से शहद निकल आता है तथा मधुमक्खियों का पुनः मधु इकट्ठा करने के लिए दे दिया जाता है। इस प्रकार मधुमक्खी वंश का भी नुकसान नहीं होता है तथा मौसम होने पर लगभग पुनः शहद का उत्पादन हो जाता है।
मौन पालन का आर्थिक आय-व्यय विवरण:
      मधुमक्खी पालन का महत्व फलों, तरकारियों, दलहनी, तिलहनी फसलों पर परागण के द्वारा उपज की बढ़ोत्तरी तो होती ही है, इसके साथ-साथ इसके द्वारा उत्पादित मधु, मोम का लाभ भी मिलता है।
       स्थापना के प्रथम वर्ष में तीन मौन वंश से दो अतिरिक्त मौन वंश एवं 20-25 किलोग्राम मधु का उत्पादन होता है। 2500 रूपये की आय प्रति वर्ष होती है। दूसरे वर्ष में अल्प व्यय में अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।
मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपये का पैकेज:
       कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए जारी लॉक डाउन से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान की क्षति को कम करने के उद्देश्य से माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 12 मई 2020 को भारत की जीडीपी के 10% के बराबर 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत अभियान का आह्वान किया था। इस व्यापक पैकेज में देश के सभी वर्गों को हुए नुकसान को देखते हुए घोषणाएँ की गई, साथ ही कई नीतिगत बदलाव भी किये जाने का फैसला सरकार ने लिए हैं। मोदी सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए पहले से ही मधुमक्खी पालन पर जोर दिया जा रहा है।
      सरकार किसानों को खेती के साथ मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन देने के लिए अनुदान योजना भी चला रही है | मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रूपये का पैकेज ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन आजीविका को समर्थन देने वाली एक गतिविधि हैं।मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 500 करोड़ रूपये जारी किये गए हैं। मधुमक्खी पालन से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ रोजगार का साधन प्राप्त होता है वहीं परागण के माध्यम से फसलों से होने वाली आय और गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है साथ ही मधुमक्खी पालन से शहद और मोम जैसे उत्पाद भी प्राप्त होते हैं।
     वित्त मंत्री श्री निर्मला सीतारमण ने इस राशि से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में निम्न योजनाओं के क्रियान्वन की बात कही :- एकीकृत मधुमक्खी पालन विकास केंद्रों, संग्रह, विपणन और भंडारण केंद्रों, पोस्ट हार्वेस्ट और मूल्य वर्धन सुविधाओं आदि से संबंधित बुनियादी ढांचे का विकास; मानकों का कार्यान्वयन और ट्रेसबिलिटी सिस्टम का विकास करना महिलाओं पर बल देने सहित क्षमता निर्माण; क्‍वालिटी नूक्लीअस स्‍टॉक और मधुमक्खी पालकों का विकास। इससे 2 लाख मधुमक्खी पालकों की आय में वृद्धि होगी और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण शहद की प्राप्ति होगी। 
      भारत में मधुमक्खी पालन अंतराष्‍ट्रीय खाद्य एंव कृषि संगठन- FAO के 2017-18 के आंकडों के अनुसार शहद उत्‍पादन के मामले में भारत (64.9 हजार टन शहद उत्‍पादन के साथ)  दुनिया में आठवें स्‍थान पर रहा जबकि चीन (551 हजार टन शहद उत्‍पादन ) के साथ पहले स्‍थान पर रहा। बीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार मधुमक्‍खी पालन को केवल शहद और मोम उत्‍पादन तक सीमित रखे जाने की बजाए इसे परागणों, मधुमक्‍खी द्वारा छत्‍ते में इकठ्ठा किए जाने वाले पौध रसायन, रॉयल जेली और मधुमक्‍खी के डंक में युक्‍त विष को उत्‍पाद के रूप में बेचने के लिए भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है जिससे भारतीय किसान काफी लाभान्वित हो सकते हैं।
◆ महेश चन्द्र वर्मा
(श्री महेश चन्द्र वर्मा उन्नत मौन पालन एवं तत्सम्बन्धी प्रशिक्षण व संसाधन प्रबंध गतिविधियों से जुड़े सम्मानित उद्यमी हैं)